द करंट स्टोरी, भोपाल। पश्चिम मध्य रेलवे में एक बार फिर यात्रियों की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। ट्रेन संचालन के दौरान किया जाने वाला फील टेस्ट बंद करने की कवायद चल रही है। यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह टेस्ट अति आवश्यक है, बावजूद इसके रेलवे ने इसे बंद करने का मन बना लिया है।
द करंट स्टोरी को नाम न छापने की शर्त पर पश्चिम मध्य रेलवे के उच्च अधिकारी ने बताया कि इंजन के ड्रायवर यानि कि लोको पायलट द्वारा ट्रेन चलाने से पहले फील टेस्ट किया जाता है। इससे यह सुनिश्चित किया जाता है कि ट्रेन व इंजन के ब्रेक आदि सही काम कर रहे हैं या नहीं। लेकिन पश्चिम मध्य रेलवे के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस टेस्ट को बंद करने का मन बना लिया है।
अधिकारी ने आगे बताया कि यात्रियों की सुरक्षा के लिए उक्त टेस्ट अत्यंत महत्वपूर्ण है। कई बार ऐसा होता है कि ट्रेन की गति ज्यादा है और अचानक ही ट्रेक पर लोको पायलट को कुछ गड़बड़ दिखता है तो उसे इमरजेंसी ब्रेक लगाकर ट्रेन की गति को कंट्रोल करना पढ़ता है। ऐसी किसी भी स्थिति से निपटने के लिए फील टेस्ट मददगार साबित होता है।
क्यों बंद किया गया फील टेस्ट?
पश्चिम मध्य रेलवे के एक अन्य वरिष्ठ अधिकारी ने द करंट स्टोरी को बताया कि फील टेस्ट से ट्रेन के संचालन में देरी हो रही थी। इस देरी को कम करने के लिए फील टेस्ट को बंद किया गया है जिससे कि ट्रेन समय पर चल सके। हांलाकि इससे यात्रियों की सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ेगा इस पर अधिकारी बोलने से बचते रहे।
क्या होता है फील टेस्ट?
इसे ऐसे समझें कि, जब भी कोई व्यक्ति नई गाड़ी या दूसरे की गाड़ी को चलाता है तो सबसे पहले ब्रेक चेक करने के लिए गाड़ी की स्पीड बढ़ाकर ब्रेक दबाता हैं, जिससे कि ब्रेक की स्थिति पता चल जाए। ठीक इसी प्रकार लोको पायलट इंजन को चलाने के पहले उसकी स्पीड बढ़ाकर ब्रेक आदि लगाकर पता करता है कि इंजन और कोचों के ब्रेक आदि ठीक से काम कर रहें हैं या नहीं। साथ ही अन्य उपकरणों की भी जांच हो जाती है। इस प्रक्रिया में 5 से 15 मिनट का समय लगता है, जिससे ट्रेन संचालन में देरी होती है। लेकिन यात्रियों की सुरक्षा के लिए यह अतिमहत्वपूर्ण है।
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