मंत्री को किया दरकिनार क्योंकि चल रही आईएएस की मनमर्जियां?
जो नियम लागू नहीं उसके उपनियम का लिया सहारा
प्रदूषण नियंत्रण या अधिकारियों-कर्मचारियों पर नियंत्रण ?
प्रवेश गौतम, भोपाल। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Madhya Pradesh Pollution Control Board) में पिछले कुछ समय से मानो ऐसा प्रतीत हो रहा है कि आईएएस (IAS) की मनमर्जियों का दौर चल रहा है। नियमों (Rules and regulations of government) को दरकिनार करके संभवत: प्रताड़ना के उद्देश्य से निर्णय लिए जा रहे हैं। हालात ऐसे हो गए हैं कि कर्मचारियों व अधिकारियों में डर का माहौल है। वहीं विभागीय मंत्री (Environment Minister) केवल नाम तक सीमित रह गए हैं, उन्हें न तो विभाग (Pollution Department) की कोई महत्वपूर्ण फाइल भेजी जा रही है और न ही सूचना (Information) दी जा रही है। आलम यह है कि जो नियम बोर्ड (Board of Directors) में लागू ही नहीं है उसके उप नियम के तहत कर्मचारियों व अधिकारियों (Government Employees) पर कार्यवाही की जा रही है। आपको बता दें, बोर्ड के अध्यक्ष (Chairman of Pollution Control Board) आईएएस अनिरुद्ध मुखर्जी (IAS Aniruddh Mukherjee) जो विभाग के प्रमुख सचिव (Principle Secretary) भी है, स्वयं को बोर्ड की छानबीन समिति का अध्यक्ष बनाते हैं और उनके मातहत कार्य करने वाले अधिकारियों को सदस्य व संयोजक। ऐसे में समिति की निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं।
13 मई को अनिरुद्ध मुखर्जी की अध्यक्षता में मप्र प्रदूषण बोर्ड (MPPCB) की 160वीं बैठक (Board of Director Meeting) में एजेंडा क्रमांक 2.4 के तहत एक निर्णय पारित किया गया। जिसमें मप्र (GAD) सामान्य प्रशासन विभाग (Madhya Pradesh General Administration Department) के नियमों के तहत बोर्ड के कुछ अधिकारियों व कर्मचारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति (Compulsory Retirement) देने का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। आपको लग रहा होगा कि यह सामान्य प्रक्रिया है। लेकिन सामान्य सी प्रक्रिया लगने वाले इस निर्णय में कई तथ्य ऐसे हैं जो अध्यक्ष व प्रमुख सचिव अनिरुद्ध मुखर्जी की मंशा व निष्पक्षता पर सवाल खड़े कर रहे हैं। एक एक करके आपको बताते हैं उन तथ्यों कों:
- निष्पक्षता नहीं दिखी। बोर्ड बैठक के एजेंडे में जिस छानबीन समिति का उल्लेख किया गया वह सामान्य प्रशासन विभाग के नियमों अनुसार नहीं बनाई गई थी। इस समिति में जो भी सदस्य थे वह अध्यक्ष व प्रमुख सचिव के आधीन कार्य करने वाले लोग थे, जिनमें अवर सचिव, अधीक्षण अभियंता व स्टाफ अफिसर शामिल हैं। ऐसे में पूरी संभावना है कि प्रमुख सचिव की मंशा अनुसार डर के कारण दबाव में आकर अन्य सदस्यों द्वारा सहमति दी गई हो। जबकि सामान्य प्रशासन विभाग ऐसे मामलों में समिति के अंदर निष्पक्षता के लिए विभाग के बाहर के सदस्य होने की बात कहता है। जिसका पालन प्रदूषण बोर्ड में नहीं किया गया।
- कोरम पर संशय। मप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में कुल 17 सदस्य होने का प्रावधान है। जिनमें 3 अशासकीय सदस्य व 5 जनप्रतिनिधियों सहित शासकीय अधिकारियों को शामिल किया गया है। लेकिन वर्तमान में केवल 9 सदस्यों से बोर्ड की बैठक करवाई गई। इनमें सभी सदस्य शासकीय अधिकारी हैं जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से वर्तमान बोर्ड अध्यक्ष अनिरुद्ध मुखर्जी के आधीन ही आते हैं। ऐसे में अनिरुद्ध मुखर्जी की अध्यक्षता में बनी छानबीन समिति की अनुशंसा को प्रदूषण बोर्ड की 160वीं बैठक में पारित करने के निर्णय को निष्पक्ष नहीं कहा जा सकता। बोर्ड में जब तक अशासकीय सदस्य व जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी न हो तब तब बोर्ड के अध्यक्ष जो चाहेंगे वह निर्णय अपने मातहत कार्य करने वाले शासकीय अधिकारियों से पारित करवा सकते हैं। यानि की मनमर्जियां!
- सबसे अहम पहलू यह है कि जो नियम प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में लागू ही नहीं है उसके उपनियम कैसे लागू होंगे। दरअसल कर्मचरियों व अधिकारियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देकर नौकरी से निकाला गया है। अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश में मप्र सामान्य प्रशासन विभाग के परिपत्र क्रमांक सी-3-24/2000/3/एक दिनांक 22/8/2000, 10/12/2001, 21/2/2002 तथा 20/3/2003 का उल्लेख है। इसके साथ ही मप्र सिविल सेवा पेंशन नियम 1976 के नियम 42 के उप नियम (1) के खण्ड (बी) का उल्लेख है। उक्त परिपत्रों व उपनियम को बोर्ड में लागू कैसे किया गया, यह भी एक सवाल है। बोर्ड में आजतक किसी को पेंशन लाभ नहीं मिला है। क्योंकि बोर्ड में पेंशन नियम लागू ही नहीं है। हालांकि पूर्व में बोर्ड में पेंशन देने का प्रस्ताव पारित हुआ था किन्तु अभी तक इसका लाभ किसी भी कर्मचारी व अधिकारी को नहीं मिला है। ऐसे में सवाल खड़े होते हैं कि जब पेंशन का लाभ बोर्ड में किसी को नहीं मिला और न ही यह लागू है तब उसी नियम के उपनियम के तहत अनिवार्य सेवानिवृत्ति कैसे दे दी गई ?
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बोर्ड में पेंशन नियम लागू नहीं हैं तो इसी नियम के तहत गठित की गई बोर्ड की छानबीन समिति का गठन अपने आप में अवैधानिक हो जाता है। और यदि पेंशन लागू है तो अनिवार्य सेवानिवृत्ति के साथ पेंशन का लाभ भी सेवा से पृथक किए गए कर्मचारियों व अधिकारियों सहित समस्त रिटायर्ड लोगों को मिलना चाहिए।
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