द करंट स्टोरी, भोपाल। भोपाल नगर निगम :बीएमसी: जो न करे वह कम है। अभी तक तो बिना नल कनेक्शन के ही बिल जारी होते थे, लेकिन इस बार तो बिना झाड़ू लगाए और बिना कचरा उठाए ही नगर निगम ने लाखों रुपए के बिल कई सरकारी दफ्तरों को थमा दिए। इससे खफा कुछ विभागों ने नगर निगम से पूछ लिया कि आपने क्या काम किया? मजे कि बात यह है कि मामले से जुड़े दो अपर आयुक्तों को इस बात कि जानकारी ही नहीं है।
द करंट स्टोरी को कई दिनों से इस बात कि जानकारी मिल रही थी, कि राजस्व वसूली को बढ़ाने के लिए भोपाल नगर निगम द्वारा कई अजीबो गरीब हथकंडे अपनाए जाने का विचार चल रहा है। और कुछ हुआ भी है, जो सालों से नहीं हुआ।
मामले की तफ्तीश के दौरान द करंट स्टोरी को जानकारी मिली कि बीएमसी द्वारा नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन प्रभार देयक के नाम पर कई सरकारी विभागों को लाखों रुपए के बिल जारी किए गए हैं।
विभागों ने पूछा क्या काम किया है?
बीएमसी द्वारा जारी किए गए इन बिलों ने कई सरकारी विभागों को हैरत में डाल दिया है। इनमें से कुछ विभागों ने नगर निगम को पत्र लिखकर पूछा है कि आपने नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के तहत क्या काम किया है और प्रभार गणना का आधार क्या है? हालांकि बीएमसी ने अभी तक इसका कोई जवाब नहीं दिया है।
क्या 2012 से सो रहा था नगर निगम?
नगर निगम द्वारा जारी किए गए इन बिलों में आश्चर्य वाली बात यह भी है कि वर्ष 2012—13 से लेकर 2016—17 तक के लिए एक साथ बिल जारी किए गए हैं। सवाल यह है कि यदि ऐसा को कोई प्रभार वसूलना भी था, तो बीएमसी ने हर साल बिल जारी क्यों नहीं किए।
दो अपर आयुक्तों ने जानकारी होने से मना किया
इस मामले पर जब द करंट स्टोरी ने राजस्व विभाग के अपर आयुक्त प्रदीप जैन और उपायुक्त विनोद शुक्ला से संपर्क किया तो दोनों ने बताया कि उन्हें ऐसे किसी भी बिलों की कोई जानकारी नहीं है। वहीं नगरीय ठोस अपशिष्ट प्रबंधन के अपर आयुक्त एमपी सिंह ने बताया कि उनके द्वारा ऐसे किसी भी बिल को जारी नहीं किया गया है। ऐसे में सवाल उठता है कि फिर किसके कहने पर बिल जारी हो रहे हैं और बीएमसी में इसका कोई रिकॉर्ड है भी या नहीं?
आयुक्त के दबाव में हो रहे ऐसे काम
बीएमसी से जुड़ें सूत्रों ने द करंट स्टोरी को बताया कि निगम आयुक्त छवि भारद्वाज द्वारा राजस्व वसूली को लेकर आए दिन अधिकारियों और कर्मचारियों पर दबाव बनाया जा रहा है। इसी दबाव के चलते ऐसे बिल जारी किए जा रहे हैं, जो अभी तक अस्तित्व में थे ही नहीं।
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