प्रवेश गौतम, भोपाल। नेशलन ग्रीन ट्रिब्युनल (NGT) ने बिल्डरों द्वारा की जा रही लापरवाही पर सख्त रुख अपनाते हुए एक बार फिर प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) के हाथ में कमान दे दी है। NGT ने एक आदेश पारित करते हुए कहा है कि बिल्डरों को अपने सभी प्रोजेक्ट के लिए पीसीबी से वायु एवं जल (प्रदूषण निवारण और नियंत्रण) अधिनियम के तहत सम्मति लेना होगी। गौरतलब है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 9 दिसंबर 2016 को नोटिफिकेशन के जरिए पीसीबी से सम्मति लेने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया था।
NGT की प्रिंसिपल बेंच ने 8 दिसंबर को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए अपने अंतरिम आदेश में कहा है कि केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा 9 दिसंबर 2016 को जारी नोटिफिकेशन पर्यावरण कानूनों के अनुसार उपयुक्त नहीं है। बेंच ने आदेश देते हुए कहा कि उक्त नोटिफिकेशन से पर्यावरण संरक्षण के मूल उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती। बेंच ने मंत्रालय के इस नोटिफिकेशन को रद्द करते हुए मंत्रालय को दोबारा इस पर विचार करने एवं सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए नया नोटिफिकेशन जारी करने के आदेश दिए हैं। तब तक के लिए पुराना नोटिफिकेशन अस्तित्व में रहेगा।
क्या था नोटिफिकेशन में?
मंत्रालय द्वारा जारी नोटिफिकेशन में बिल्डरों एवं निर्माण कंपनियों को 1.5 लाख वर्ग मीटर तक के प्रोजेक्ट के लिए पीसीबी से सम्मति लेने की अनिवार्यता को समाप्त कर दिया गया था। जबकि 2006 के नोटिफिकेशन में 20 हजार वर्ग मीटर से ज्यादा के क्षेत्रफल में बनने वाले हर प्रोजेक्ट के लिए संबंधित बिल्डर को पीसीबी से सम्मति लेना अनिवार्य था।
अब क्या होगा?
NGT के इस आदेश के बाद से पुन: बिल्डरों को पीसीबी से सम्मति लेनी होगी। इससे पर्यावरण के लिए जरुरी सभी दिशा निर्देशों एवं नियमों का पालन और सुनिश्ति होगा।
मंत्रालय की चाल है!
NGT ने अपने आदेश में कहा है कि मंत्रालय द्वारा इस तरह की छूट प्रदान करने से पर्यावरण संरक्षण में प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। वहीं बेंच ने यह भी कहा कि ईज आॅफ डूईंग बिजनेस (Ease of Doing Business) के नाम पर छूट प्रदान करना एक चाल है।
NGT द्वारा करी गईं कुछ खास टिप्पणी
- पर्यावरण कानून के लिए यह एक खतरा है
- उक्त नोटिफिकेशन से पीसाीबी के अधिकार समाप्त हो जाते
- इससे पर्यावरण आंकलन एवं संरक्षण के ढांचे कमजोर होता
- इसमें कई कमियां हैं, जिससे कि पर्यावरण को क्षति पहुंच सकती है
- स्थानीय निकायों के पास अधिकार जाने से पर्यावरण मंत्रालय कमजोर होता, क्योंकि निकायों पर मंत्रालय का अधिकार नहीं है
- मंत्रालय द्वारा कोई भी ऐसा प्रमाण या रिसर्च पेश नहीं की गई है, जिसमें बिल्डरों को छूट प्रदान करने से पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा
- उक्त नोटिफिकेशन एक प्रतिगामी निर्णय है
- इससे 2004 से पहले जैसे हालात हो जाएंगे
- छूट प्रदान करना आधारहीन है
- निर्माण संबंधित उद्योगों से 22 प्रतिशत कार्बन डाईआॅक्साइड (Carbon Dioxide) का उत्सर्जन होता है
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