प्रवेश गौतम, भोपाल। हमने अपनी पिछली रिपोर्ट (भोपाल रेल मंडल में फैल रही लाखों के घोटाले की रोशनी, एक ADRM की भूमिका संदिग्ध!) में आपको बताया था कि भोपाल रेल मंडल में एलईडी लाइट फिटिंग के लिए निकाले गए टेंडर में नियमों को ताक पर रखकर खरीदी की गई और ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए लगभग 15 दिनों के अंदर भुगतान भी कर दिया गया।
क्या है मामला?
भोपाल रेल मंडल के इलेक्ट्रिकल (जनरल) शाखा ने एक करोड़ रुपए की मंजूरी लेकर, एलईडी लाइट (100/75/25/20 वाट) के लिए जनवरी 2017 को टेंडर जारी किया। जिसका वर्क आॅर्डर भोपाल के गोविंदपुरा स्थित एक कंपनी को 16 मार्च को जारी किया गया। इसके बाद कंपनी ने 30 व 31 मार्च को मटेरियल भी सप्लाई कर दिया, और इसकी एमबी बुक (मेजरमेंट बुक — मटेरियल संबंधित सभी जानकारी) भी साइन होकर अप्रूव कर दी गई, जिसके बाद कंपनी को लगभग 40 लाख रुपए का भुगतान कर दिया गया।
सीनियर डीईई (जनरल) की भूमिका संदेहास्पद?
रेलवे के नियमानुसार, कोई भी मटेरियल की सप्लाई पहले डीपो में होती है। उसके बाद संबंधित डिपो का इंचार्ज एसएसई (सीनियर सेक्शन इंजीनियर), मटेरियल को चेक करता है और उसकी समस्त टेस्ट रिपोर्ट को वेरिफाई करता है, सेंपल चेक करता है, उसके बाद एमबी बुक में साइन करता है। लेकिन इस टेंडर में ऐसा नहीं हुआ। बल्कि तत्कालीन सीनियर डीईई (डिविजनल इलेक्ट्रिकल इंजीनियर-जनरल) ने स्वयं ही सभी सेंपल की टेस्ट रिपोर्ट को अप्रूव कर दिया। और सभी एसएसई को अपने कार्यालय बुलाकर एमबी बुक साइन करवा ली और ठेकेदार का भुगतान भी करवा दिया।
क्या हुआ था 31 मार्च की शाम को?
रेलवे के सूत्रों ने द करंट स्टोरी को बताया कि तत्कालीन सीनियर डीईई ने लगभग 6 एसएसई को भोपाल डीआरएम कार्यालय में बुलवाया। और सभी एसएसई को एमबी बुक साइन करने के लिए दबाव बनाया। यह घटना शाम को लगभग 6 से 7 बजे की है।
दोपहर लगभग 12 से 2 के बीच ओएस (आॅफिस एसिसटेंट) ने फोन करके सभी एसएसई को कहा कि "साहब ने सभी को अर्जेन्ट शाम को अपने आॅफिस बुलाया है, अपनी एमबी बुक लेकर, समय से आ जाईएगा लगभग 5 बजे।"
शाम को सीनियर डीईई (जनरल) के कमरे का दृश्य-
सीनियर डीईई: आप सभी को पता है न कि आपको यहां क्यों बुलाया गया है?
एसएसई: नहीं सर, पूरी जानकारी नहीं है।
सीनियर डीईई: ओके, एलईडी लाइट :100/75/25 वॉट: का कंपनी ने सप्लाई कर दिया है। अब आप लोग एमबी बुक आज ही साइन करके जमा कर दें, ताकि भुगतान कराया जा सके।
एक एसएसई: लेकिन सर, अभी तो सेंपल टेस्ट करना बाकि है। मटेरियल को चेक कर लेते हैं, उसके बाद एमबी बुक साइन कर देंगे।
सीनियर डीईई: आप मुझसे ज्यादा होशियर हैं क्या, मैने सभी टेस्ट रिपोर्ट को अप्रूव कर दिया है। अब आप मेरे इस अप्रूवल के आधार पर एमबी बुक साइन कर दीजिए।
दूसरा एसएसई: जैसा साहब कह रहे हैं, वैसा कर दीजिए, वरना कहीं साहब नाराज न हो जाएं।
सीनियर डीईई: यह समझदार हैं। आप लोग भी जल्दी से साइन कर दीजिए। और जिसका जो भी बनता होगा पूरा कर दिया जाएगा।
ओएस: साहब तो वैसे ही बहुत होशियार हैं, आज 31 तारीख है। जल्दी कर दीजिए वर्ना फंड लैप्स हो जाएगा।
(नोट: उपरोक्त वार्तालाप, रेलवे के इलेक्ट्रिकल शाखा से जुड़े सूत्रों ने दी है, द करंट स्टोरी इसकी पुष्टि नहीं करता। हालांकि सूत्र का दावा है कि यदि सभी एसएसई की 31 मार्च की टीए बिल डिटेल और मोबाइल लोकेशन चेक की जाए तो उपरोक्त बात साबित हो सकती है।)
संदेहास्पद भूमिका:
तत्कालीन सीनियर डीईई जनरल
एक एसएसई
एस ओएस
एक एई
एलईडी घोटाले की पोल खोलती इंवेस्टिगेटिव रिपोर्ट की कड़ी में अगली और अंतिम रिपोर्ट में द करंट स्टोरी बताएगा:
-भोपाल रेल मंडल LED SCAM: 20 की जगह सप्लाई हुई 18 वॉट, सैंपल गायब, टेस्ट रिपोर्ट भी संदेाहास्पद (कंपनी व रेलवे अधिकारियों और कर्मचारियों का नाम, कैसे हुआ घोटाला, कैसे आई लाल, पीली और हरी लाइट जबकि आरडीएसओ में इसका प्रावधान ही नहीं, 20 का कैसे हुआ 18, हबीबगंज स्टेशन डिपो में क्यों हुई सप्लाई, पोल खोलती ज्वाइंट रिपोर्ट, छूमंतर हो गए सेंपल और भी बहुत कुछ।)
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