प्रवेश गौतम, भोपाल। भोपाल रेल मंडल में एलईडी खरीदी में हुई अनियमित्ताओं को लेकर, द करंट स्टोरी ने अपनी पहली दो रिपोर्ट (भोपाल रेल मंडल में फैल रही लाखों के घोटाले की रोशनी, एक ADRM की भूमिका संदिग्ध! एवं भोपाल रेल मंडल LED SCAM: शाम को बंद कमरे में क्यों भराई गई एमबी बुक?) में कई खुलासे किए। इसी कड़ी की तीसरी और अंतिम रिपोर्ट में हम बताएंगे क्या हुआ और कैसे हुई अनियमित्ता।
अपनी इंवेस्टिगेशन में द करंट स्टोरी ने कई कड़ियों को जोड़ा और पाया कि भोपाल मंडल की इलेक्ट्रिकल शाखा में पदस्थ तत्कालीन सीनियर डिविजनल इंजीनियर जनरल (सीनियर डीईई) द्वारा नियमों को ताक पर रखकर एक खास कंपनी एनर्जी ग्रीन को फायदा पहुंचाने की कोशिश की गई।
टेंडर में 100, 75, 25 एवं 20 वॉट की एलईडी लाइट व फिटिंग सप्लाई करनी थी। इसके लिए वित्त विभाग से एक करोड़ रुपए की मंजूरी ली गई थी। जिसमें लगभग 90 लाख रुपए की अनुमानित दर से एलईडी लाइट खरीदने का टेंडर निकाला गया जिसे कि एनर्जी ग्रीन ने लगभग 23 प्रतिशत कम दर में हासिल कर लिया। रुपए कम करके सप्लायर कंपनी एनर्जी ग्रीन द्वारा गुणवत्ता विहीन मटेरियल सप्लाई किया गया।
सीनियर डीईई ने ठेकेदार को फायदा पहुंचाने के लिए सैंपल टेस्टिंग रिपोर्ट को स्वयं मंजूर कर दिया गया। बाद में एसएसई द्वारा सैंपल मांगने पर दिखाने व देने से मना कर दिया गया।
लाल पीली लाइट हुई सप्लाई
सप्लायर कंपनी द्वारा 100 वॉट की हाई जो मास्ट एलईडी लाइट सप्लाई की गई, उनका रंग सफेद न होकर लाल, पीला आदि है। जबकि रेलवे से जुड़े सूत्रों के अनुसार आरडीएसओ ने सफेइ लाइट को ही मंजूरी दी है। ऐसा ही 75 वॉट में भी हुआ।
टेस्ट रिपोर्ट में अंतर
सप्लायर कंपनी द्वारा दी गई टेस्ट रिपोर्ट और दूसरी लैब में कराई गई टेस्ट रिपोर्ट में काफी अंतर है। ईरडा की लैब में कराई गई टेस्ट में वॉट, एफिकेसी और पावर फैक्टर में सप्लायर द्वारा सप्लाई की गई एलईडी फेल हो गई। ऐसे में सप्लायर द्वारा दी गई टेस्ट रिपोर्ट संदेहास्पद प्रतीत होती है।
20 की जगह 18 वॉट की एलईडी हो रही सप्लाई
सप्लायर द्वारा 20 वॉट बताकर जो एलईडी लाइट सप्लाई की जा रही है, वह दरअसल 18 वॉट की है। जो कि टेंडर की शर्तों का खुला उल्लंघन है।
नकली ड्रायवर लगाए गए
डिपो के एक सीनियर सेक्शन इंजीनियर ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि, संयुक्त निरीक्षण के दौरान एनर्जी ग्रीन द्वारा सप्लाई की गई 20 वॉट की एलईडी में डुप्लीकेट ड्रायवर लगा होना पाया गया। टेंडर की शर्तों के मुताबिक पावरट्रॉनिक के ड्रायवर होना चाहिए था, लेकिन निरीक्षण में किसी और कंपनी का ड्रायवर पाया गया।
एलईडी भी नकली
गोपनीय रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि 20 वॉट की एलईडी लाईट भी टेंडर में उल्लेखित कंपनी का नही है।
सप्लायर ने भी माना, गलत हो रही सप्लाई!
गोपनीय पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि सप्लायर कंपनी द्वारा भी माना गया है कि ड्रायवर और एलईडी लाइट में कमी है।
इन सवालों के जवाब खोल सकते हैं पूरा भ्रष्टाचार:
1. टेंडर में उल्लेखित एलईडी लाइट का रंग किस आधार पर निर्धारित किया गया, जबकि आरडीएसओ में ऐसा कोई प्रावधान ही नहीं है।
2. सप्लायर द्वारा दी गई टेस्ट रिपोर्ट में कितने सैंपल भेजे गए, क्या वह आईईसी के नियमों के अनुसार ही थे।
3. सप्लायर द्वारा सैंपल की टेस्टिंग के लिए लैब में भेजे गए सैंपल को किसने सिलैक्ट किया और टेस्टिंग के वक्त रेलवे का कौन सा अधिकारी या कर्मचारी लैब में मौजूद था?
4. ERDA (Eectrical Research And Development Association) में जांचे गए सैंपल फेल हुए तो सप्लायर की रिपोर्ट में पास कैसे आए?
5. क्या सप्लायर ने रेलवे के नियमानुसार, सभी टेस्ट करवाए हैं? यदि हां तो उसकी रिपोर्ट कहा हैं?
6. सप्लायर द्वारा कितने सैंपल टेस्ट कराए गए और वह सभी टेस्ट सैंपल कहां है?
7. सीनियर डीईई जनरल ने एमबी बुक अपने कमरे में क्यों साइन करवाई?
8. सात दिनों के अंदर मटेरियल सप्लाई करने के लिए क्यों बोला गया?
9. मटेरियल का थर्ड पार्टी इंस्पेक्शन क्यों नहीं कराया गया?
10. सप्लायर 20 वॉट की जगह क्यों दे रहा 18 वॉट के एलईडी बल्ब?
11. हबीबगंज स्टेशन प्रायवेट होने के बाद भी एलईडी की सप्लाई हबीबगंज डिपो में क्यों करवाई गई? एसएसई ने बिना टेस्ट रिपोर्ट के क्यों लिया पूरा मटेरियल?
12. हबीबगंज डिपो के बाद न्यू यार्ड इटारसी के डिपो में क्यों दी गई सप्लाई, जबकि इसके आधीन एक भी स्टेशन नहीं हैं?
एनर्जी ग्रीन को ब्लैक लिस्ट करने की तैयारी में नगर निगम
भोपाल नगर निगम से जुड़े सूत्रों ने द करंट स्टोरी को बताया कि एनर्जी ग्रीन ने मार्केट रेट से लगभग 25 प्रतिशत कम रेट में एलईडी लाइट सप्लाई का आॅर्डर लिया था। लेकिन बाद में सप्लाई नहीं कर पाया था, क्योंकि इंजीनियरों ने लाइट में कमी बताई थी। उसके बाद तत्कालीन सिटी इंजीनियर ने इस कंपनी को ब्लैक लिस्ट करने के लिए पत्र भी लिखा था।
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