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भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी बीना—कोटा रेल लाइन, 4 साल में एक भी सेक्शन नहीं हुआ शुरु

Exclusive Apr 20, 2017       6799
भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी बीना—कोटा रेल लाइन, 4 साल में एक भी सेक्शन नहीं हुआ शुरु

प्रवेश गौतम, भोपाल। रेल प्रशासन द्वारा हमेशा ही अच्छी सुविधाओं का दावा किया जाता रहा है, लेकिन इस दावे की हवा निकालने में लगे रहते हैं कुछ भ्रष्ट अधिकारी। यात्रियों को बेहतर रेल सेवा देने के लिए रेल मंत्रालय ने बीना से कोटा के बीच 273 किलोमीटर का दूसरा रेल ट्रेक बनाने की घोषणा की थी, जिसका कांट्रेक्ट अक्टूबर 2013 में दो कंपनियों को अवार्ड कर दिया गया था। लेकिन अधिकारियों की लापरवाही और कंपनियों की मनमानी के चलते अभी तक एक भी सेक्शन कमीशन न​हीं हो पाया है। 

द करंट स्टोरी को प्राप्त जानकारी अनुसार, उक्त प्रोजेक्ट को तीन पैकेज में बांटा गया था। रेल लाइन दोहरीकरण के लिए दो कंपनियों — सिंम्प्लेक्स और कालिंदि कोबरा को काम दिया गया था। लेकिन 4 साल पहले कांट्रेक्ट अवार्ड होने के बावजूद अभी तक लाइन कमीशन नहीं हो पाई है। गौरतलब है कि प्रोेक्ट की लागत 2013 में लगभग 730 करोड़ रुपए थी। 

इस प्रोजेक्ट का काम रेल विकास निगम लिमिटेड (आरवीएनएल) द्वारा कराया जा रहा है। आरवीएनएल के चीफ प्रोजेक्ट मैनेजर (सीपीएम) पी के सिंह से जब द करंट स्टोरी ने प्रोजेक्ट में हो रही देरी के बारे में पूछा तो उन्होंने कुछ भी कहने से मना कर दिया। वहीं आरवीएनएल के दूसरे सीपीएम विजय नाथावत ने द करंट स्टोरी को बताया कि इस प्रोजेक्ट में कंपनियां काम धीरे कर रही हैं। इसके अलावा बजट की भी समस्या आ रही है।

भोपाल रेल मंडल के डीआरएम शोभन चौधरी ने द करंट स्टेारी से बात करते हुए माना कि प्रोजेक्ट की रफ्तार धीमी है, जल्द ही इसकी समीक्षा करके काम में तेजी लाई जाएगी। 

वहीं पश्विम मध्य रेलवे से जुड़े सूत्रों ने द करंट स्टोरी को प्रोजेक्ट में हो रही देरी के कारण के बारे में बताया। सूत्र के अनुसार प्रोजेक्ट में देरी इसलिए हो रही है क्यों​कि दोनो कंपनियां अब काम ​नहीं करना चाहती। वहीं दोनो कंपनियों को जितना भुगतान हुआ है उससे उन्हें लाभ हो चुका है और अब दोनो कंपनियों ने काम न करने की इच्छा जाहिर कर दी है।

कैसे करते हैं प्रोजेक्ट में भ्रष्टाचार:
द करंट स्टोरी ने मामले की और छानबीन की तो प्रोजेक्ट में देरी और भ्रष्टाचार का आपस में संबंध सामने आया हैं। पत्रकारिता केे अपने दायित्व को निभाने के लिए द करंट स्टोरी आपको बताने जा रहा है कि कैसे होता है रेलवे में करोड़ों का भ्रष्टाचार।

— प्रोजेक्ट को हमेशा दो हिस्सों में किया जाता है, मटेरियल सप्लाई और एक्जीक्यूशन।
— कंपनियों को आरवीएनएल मशीनरी और इंफ्रास्ट्रक्चर के नाम पर कांट्रेक्ट अवार्ड ​होने के साथ ही कुछ पेमेंट एडवांस जारी कर देता है।
— कंपनियां इस एडवांस से मशीनरी तो नहीं खरीदती बल्कि मटेरियल जरुर खरीद लेती हैं। 
— फिर मटेरियल खरीदी का बिल लगाकर उसका भी पेमेंट आरवीएनएल से ले लेतीं हैं।
— किसी भी प्रोजेक्ट में औसतन 80 प्रतिशत पेमेंट मटेरियल के लिए की जाती है। 
— कंपनियां मटेरियल के पेमेंट होने तक ही काम दिखाती हैं। उसके बाद जब एक्जीक्यूशन की बारी आती है तो अपने काम को कम दाम पर पेटी कांट्रेक्ट में बांट देती हैं।
— पेटी कांट्रेक्टर को अकसर बड़ी कंपनियां और ठेकेदार पेमेंट में आनाकानी करती हैं, जिससे काम प्रभावित होता है।

अब समझें भ्रष्टाचार का गणित:
आरवीएनएल के अधिकारी मटेरियल के पेमेंट के लिए कुछ कमीशन लेते हैं। जो कि काफी बड़ी रकम होती है। वहीं कंपनियों को भी मटेरियल में ही प्रॉफिट होता है क्योंकि एक्जीक्यूशन के रेट हमेशा कम कोट किए जाते हैं और यह नुकसान वाला काम माना जाता है। कुछ बड़ी विश्वसनीय कंपनियां मटेरियल सप्लाई से हुए लाभ का कुछ हिस्सा एक्जीक्यूशन में लगाकर काम करती हैं। लेकिन अन्य कंपनियां ऐसा नहीं करतीं। जिससे काम प्रभावित होता है। इस पूरे मामले को जानने के बावजूद भी अधिकारी, कंपनियों सेक्शन के हिसाब से काम नहीं करवाते।

ऐसा ही हुआ बीना—कोटा रेल लाइन प्रोजेक्ट में!
कंपनियों ने पूरे 273 किलोमीटर के ट्रेक के लिए मटेरियल पहले ही खरीद लिया। जबकि अधिकारी चाहते तो कंपनियों को सेक्शन के अनुसार मटेरियल पेमेंट कर सकते थे। जब एक सेक्शन कंपलीट होता तब दूसरे के मटेरियल का पेमेंट करते। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, जिसके चलते अब प्राजेक्ट में देरी हो रही है।

(नोट: द करंट स्टोरी की इंवेस्टिगेशन सूत्रों पर आधारित है)

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