द करंट स्टोरी, भोपाल। अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से ठीक पहले, मध्यप्रदेश के भाजपा नेताओं को पशोपेश में डाल दिया है कि चुनाव में टिकट के लिए किसकी चाकरी करें। इसका कारण है, मध्यप्रदेश भाजपा में पिछले कुछ दिनों से नए प्रदेश अध्यक्ष के आने की अटकलों का दौर। कई राजनैतिक पंडित अपने—अपने अनुमान लगाने में व्यस्त हैं, तो वहीं कुछ नेता, प्रदेश अध्यक्ष बनने के लिए समीकरण बैठाने में लग गए हैं।
हालांकि भाजपा के वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष नंद कुमार सिंह चौहान के जाने की चर्चा तो उत्तर प्रदेश चुनाव के नतीजे आने के बाद से ही तेज हो गई थी। लेकिन इस चर्चा को बल तब मिला जब एक प्रमुख अखबार ने इस बात की खबर फ्रंट पेज में छाप दी। खबर में कहा गया कि नंद कुमार सिंह चौहान का कार्यकाल 2018 तक है लेकिन उससे पहले ही उनकी छुट्टी हो सकती है।
कुछ वरिष्ठ पत्रकारों और राजनितिक विश्लेश्कों ने तो अपने—अपने स्तर पर अगले प्रदेश अध्यक्ष के नाम पर विचार करना भी शुरु कर दिया है। वहीं नंद कुमार सिंह चौहान के कार्यकाल की समीक्षा भी शुरु कर दी है।
आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ) से जुड़े सूत्रों की मानें तो इस बार मध्यप्रदेश में भाजपा की कमान एक ब्राह्मण नेता को दी जा सकती है। इसके लिए नागपुर सहित नई दिल्ली में मंथन भी शुरु हो गया है। पिछले कुछ चुनावी रणनीति पर जोर डालें तो भाजपा ने सवर्ण चेहरों को बहुत तवज्जो दी है।
भाजपा शासित चार राज्यों में पहले से ही सवर्ण मुख्यमंत्री हैं, जिनमें की सभी ठाकुर हैं — उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान एवं मिजोरम। इससे पार्टी में पनपते ठाकुरवाद को हवा मिल रही थी। इसी बात से चिंतित होकर भाजपा आलाकमान के सलाहकारों ने मध्यप्रदेश में एक ब्राह्मण नेता को पार्टी की कमान देने की बात कर डाली। बस फिर क्या था, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने अपने खासमखास को बुलाकर इस पर विचार करने को कह दिया।
इस बात की भनक प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी लग गई। जिसके बाद उन्होंने पार्टी के अंदर अपने समीकरण बैठाने शुरु कर दिए।
पार्टी और आरएसएस से जुड़े वरिष्ठों की मानें तो मध्यप्रदेश में 'नरोत्तम मिश्रा' को प्रदेश अध्यक्ष बनाया जा सकता है। इसके पीछे का समीकरण है कि भाजपा से बिछड़ता ब्राह्मण वर्ग जो कि काफी हद तक सवर्णों के वोट को प्रभावित करता है। वहीं ब्राह्मण नेता के आ जाने से पार्टी को ठाकुर वाद और ओबीसी की छाप वाली पार्टी से भी निजात मिलेगी।
पार्टी के अंदर का एक धड़ा यह भी कह रहा है कि 'कैलाश विजयवर्गीय' को भी यह कमान दी जा सकती है।
हो चाहे जो भी, लेकिन नंदू भैया के कार्यकाल के पहले उनकी छुट्टी होना, कहीं न कहीं पार्टी में नेतृत्व बदलाव की ओर इशारा कर रहा है और पार्टी कार्यकर्ताओं को संदेश दे रहा है कि पार्टी किसी की बपौती नहीं है।
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