बिना लिखित आदेश कैसे बन गए आयुक्त?
द करंट स्टोरी, भोपाल। मप्र की सियासत का निजाम तो बदला पर सरकारी दफ्तरों के हाल अभी भी वही है। अधिकारियों की निरंकुशता वैसे ही जारी है। हालात ऐसे हो गए हैं जैसे अंधेर नगरी चौपट राजा। ताजा मामला भोपाल नगर निगम से संबंधित है। यहां के आयुक्त बी विजय दत्ता जी पिछले कुछ दिनों से अवकाश पर चल रहे हैं। इसके चलते राज्य सरकार ने आईएएस अभिजीत अग्रवाल को निगम का प्रभारी आयुक्त बनाया था। पांच फरवरी को जारी आदेश के अनुसार अभिजीत अग्रवाल का निर्वाचन आयोग में तबादला हो गया। अग्रवाल 6 फरवरी को निगम आयुक्त के पद से मुक्त होकर निर्वाचन आयोग में आमद दे दी।
यहां बता दें कि अग्रवाल ने निगम आयुक्त का प्रभार किसी को नहीं सौंपा है। ऐसे में तकनीकी रुप से निगम में कोई भी आयुक्त नही है। बावजूद इसके फाइलों पर एक अपर आयुक्त द्वारा बिना किसी अधिकार के ही आयुक्त के नाम पर फाइलों का निपटान किया जा रहा है।
यहां यह भी जानना जरुरी है कि अभिजीत अग्रवाल के होते हुए भी इन्हीं अपर आयुक्त ने फाइलों पर बतौर आयुक्त दस्तखत जारी रखा। द करंट स्टोरी से बात के दौरान कई अधिकारियों ने इस बात की पुष्टि भी की है।
निगम से जुड़े सूत्रों की मानें तो जिन फाइलों पर बिना अधिकार के अपर आयुक्त ने दस्तखत किए हैं उनमें से कुछ ठेकेदारों को भुगतान से संबंधित भी हैं। भुगतान के लिए पास की गई इन फाइलों में से कुछ की जांच भी चल रही है। ऐसे में अपर आयुक्त द्वारा फाइलों को साइन करना पूरी तरह से संदेहास्पद है।
विवादित है अपर आयुक्त का कार्यकाल
जिन अपर आयुक्त ने बिना कोई अधिकार फाइलों पर साइन किया है, उनका कार्यकाल विवादित रहा है। उनके संरक्षण में ही नगर निगम के बड़े बड़े घोटाले हुए हैं जिनकी जांच भी चल रही है। वहीं विधानसभा चुनाव के दौरान पूर्व भाजपा सरकार के राजनितिक कार्यक्रम में जाने के कारण चुनाव आयोग द्वारा उनको नगर निगम से हटाया भी गया था। नगरीय प्रशासन के सूत्रों से मिली जानकारी अनुसार अपर आयुक्त की नियुक्ति को लेकर कई शिकायतें भी हुई हैं, लेकिन तत्कालीन प्रमुख सचिव से करीबी संबंध होने के कारण कोई भी ठोस कार्यवाही नहीं हुई।
कौन है नगर निगम आयुक्त?
अभिजीत अग्रवाल के जाने के बाद नगर निगम में कोई भी आयुक्त नहीं है। द करंट स्टोरी ने मामले को लेकर निगम के जिम्मेदार अधिकारियों से बात की तो पता चला कि विवादित अपर आयुक्त के पास प्रभार हैं, हालांकि लिखित आदेश किसी के पास भी नहीं थे। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या नगर निगम बिना आयुक्त के ही तीन दिनों से संचालित हो रहा है?
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