द करंट स्टोरी, भोपाल। शायद आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में निर्मित 80 प्रतिशत भवनों में वाटर हारवेस्टिंग की कोई व्यवस्था नहीं है। इन आंकड़ों से नगर निगम और न ही पर्यावरण विभाग को कोई फर्क पड़ रहा है और न ही सरकार को। भोपाल में यह आलम तब है जब यहां हर साल जलाशयों और प्राकृतिक कुंडों में पानी की मात्रा कम होती जा रही है।
द करंट स्टोरी को प्राप्त जानकारी अनुसार, पिछले तीन वर्षों में भोपाल नगर निगम से कुल 9979 भवन अनुज्ञा जारी की गईं। इनमें से मात्र 1785 प्रकरणों में ही वाटर हारवेस्टिंग की व्यवस्था के लिए धरोहर राशी जमा कराई गई, जो कि कुल जारी भवन अनुज्ञा की लगभग 18 प्रतिशत ही है।
नगर निगम अपर आयुक्त मलिका नागर निगम ने द करंट स्टोरी को बताया कि नियमों के अनुसार केवल 1000 वर्ग फुट से ज्यादा क्षेत्रफल में होने वाले निर्माण में ही वाटर हारवेस्टिंग के लिए धरोहर राशी ली जाती है। इससे कम क्षेत्रफल के भवनों में ऐसा नहीं किया जाता।
वहीं पर्यावरणविदों के अनुसार, वाटर हारवेस्टिंग की व्यवस्था सबके लिए अनिवार्य होनी चाहिए। भोपाल में हर साल पानी की उपलब्धता कम हो रही है जबकि जनसंख्या में लगातार बढ़ोत्तरी हो रही है। यदि जल्द ही पानी के संरक्षण के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया तो, निश्चित ही भविष्य में एक बड़ी समस्या उत्पन्न हो जाएगी।
पेड़ों की संख्या भी हो रही कम
पिछले लगभग 15 सालों में भोपाल की हरियाली में 40 प्रतिशत से भी ज्यादा की कमी हुई है। इसका कारण शहर में लगातार हो रहे विकास कार्यों को बताया जा रहा है। वहीं ज्यादा निर्माण के चलते अंडर ग्राउंड वाटर के स्तर में भी लगातार कमी आ रही है। जानकारों के अनुसार यदि ऐसा ही होता रहा तो जल्द ही मध्यप्रदेश में जल स्तर इतना कम हो जाएगा कि आम लोग पीने के पानी को भी तरसेंगे।
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