-लागत डेढ गुना से भी ज्यादा हुई
द करंट स्टोरी, भोपाल। रेल विकास निगम लिमिटेड (RVNL) ने भोपाल में अपना कार्यालय साल 2007 में इस मंशा के साथ खोला था कि, रेलवेद के विकास से जुड़े प्रोजेक्ट का काम जल्दी और तय समय में पूरा हो जाए। लेकिन 11 साल बाद भी RVNL ने एक भी प्रोजेक्ट को उसके अंजाम तक नहीं पहुंचाया है। जबकि इसकी कमान संभालने के लिए कई काबिल अधिकारी सालों से भोपाल में ही डटे हैं। RVNL की इस लापरवाही से प्रोजेक्ट की लागत डेढ़ गुना से भी ज्यादा बढ़ गई है, जो रेलवे की जेब पर भारी पड़ रही है।
RVNL का उद्देश्य था कि रेलवे ट्रेक को डबल किया जाए जिससे रेलवे का विस्तार हो सके और ट्रेनों का संचालन और बेहतर किया जा सके। लेकिन 11 सालों में RVNL बीना-हबीबगंज के बीच तीसरी लाइन का केवल 136 किलोमीटर ट्रेक का काम ही पूरा कर पाया है। उसमें भी कई काम रेलवे ने बाद में किया, क्योंकि नए बने ट्रेक में कई खामियां थीं। इस सेक्शन में RVNL ने कई गलतियां कीं, जिसके कारण ट्रेक में स्पीड नहीं बढ़ पाई। बारिश के मौसम में तो ज्यादातर सेक्शन में 20 या 30 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से ट्रेन को निकालना पड़ता है। इन खामियों को लेकर सीआरएस :कमिश्नर रेलवे सेफ्टी: ने अपनी रिपोर्ट में भी लिखा है।
RVNL भोपाल पर एक नजर
प्रोजेक्ट का नाम कब स्वीकृत हुआ स्वीकृति के समय लागत लंबाई (KM) वर्तमान स्थिति
बीना-हबीबगंज 2008—09 428.00 करोड़ 44.76 काम चल रहा है
बीना-गुना 2011—12 457.73 करोड़ 115.07 काम चल रहा है
हबीबगंज-बरखेड़ा 2012—13 172.24 करोड़ 41.42 काम चल रहा है
बरखेड़ा-बुदनी 2012—13 244.01 करोड़ 33.00 काम चल रहा है
बुदनी-इटारसी 2012—13 104.33 करोड़ 25.09 काम चल रहा है
बीना-हबीबगंज प्रोजेक्ट
इस प्रोजेक्ट कुल लंबाई 144.76 किलोमीटर है। वर्तमान में केवल 136 किलोमीटर ही पूरा हो पाया है। यहां गौर करने वाली बात यह है कि प्रोजेक्ट को पूरा करके RVNL ने जब इसको रेलवे को हैंडओवर किया था, उस वक्त कई सेक्शन में स्पीड लिमिट लगी हुई थी। बाद में इसको रेलवे ने पूरा किया। वहीं लगभग सभी सीआरएस ने काम की गुणवत्ता पर भी सवाल उठाए थे। बावजूद इसके RVNL की लापरवाही चालू रही। सीआरएस की कुछ टिप्पणियां यह थीं:
- बैंक बनाते वक्त RVNL ने बीना नदी से रेलवे की पानी की पाइपलाइन को तोड़ दिया था। जिसको बाद में रेलवे ने अपने खर्चे से ठीक कराया।
- गुणवत्ता विहीन काम के चलते कई सेक्शन में बैंक के बैठने की समस्या है।
- बैंक की उंचाई कई जगह गड़बड़ पाई गई, जिससे ट्रेन को तेज रफ्तार में नहीं निकाला जा सकता।
- कई जगह पानी को रास्ता देने के लिए सही तरह से निर्माण नहीं किया गया, जिससे बैंक की मिट्टी में कटाव देखा गया। इसे भी रेलवे ने बाद में बनाया।
बीना-गुना में एक भी सेक्शन नहीं हुआ पूरा
बीना से गुना के बीच लगभग 115 किलोमीटर की नई रेलवे लाइन बननी थी। यह काम 2011 में स्वीकृत हुआ था। उस वक्त इसकी लागत लगभग 500 करोड़ रुपए थी, जो वर्तमान में बढ़कर लगभग 600 करोड़ रुपए हो गई है। इन पांच सालों में इस प्रोजेक्ट में एक भी सेक्शन पूरा नहीं हुआ है। प्रोजेक्ट में हो रही देरी को लेकर, भोपाल रेल मंडल ने RVNL को पत्र भी लिखा था। मामले से जुड़े जानकार बताते हैं कि इस प्रोजेक्ट की धीमी रफ्तार के कारण, इसकी लागत 800 करोड़ रुपए तक बढ़ सकती है।
5 साल में भी नहीं बन सका नर्मदा नदी पर पुल
हबीबगंज से इटारसी के बीच भी तीन हिस्सों में तीसरी रेल लाइन का निर्माण RVNL ही कर रहा है। लगभग 100 किलोमीटर की इस लाइन में होशंगाबाद में नर्मदा नदी पर भी पुल बनना था। विशेषज्ञों अनुसार, किसी भी रेल लाइन के लिए सबसे पहले पुल के निर्माण को शुरु किया जाता है। लगभग 5 साल पहले नर्मदा पर पुल बनाने का काम शुरु किया गया था, जो कि अब तक पूरा नहीं हो सका है। वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए, ऐसा लग रहा है कि इस काम में अभी एक साल से ज्यादा का वक्त और लग सकता है।
लागत हुई डेढ़ गुना से भी ज्यादा
RVNL की लापरवाही के कारण, रेलवे को इन प्रोजेक्ट के लिए अब डेढ़ गुना ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा। पांच प्रोजेक्ट की कुल लागत लगभग 1400 करोड़ रुपए थी। जो कि अब बढ़कर लगभग 1900 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गई है। मामले से जुड़े जानकार बताते हैं कि यदि इसी रफ्तार से काम होता रहा तो पांचों प्रोजेक्ट के पूरे होने तक लागत दो से तीन गुना हो जाएगी। यह पैसा आम आदमी का है जो RVNL अधिकारियों की लापरवाही के कारण बर्बाद हो रहा है।
कौन है इसका जिम्मेदार?
RVNL की लापरवाही का खामियाजा रेलवे से लेकर आम आदमी तक को उठाना पड़ रहा है। एक ओर जहां रेलवे का पैसा बर्बाद हो रहा है तो वहीं दूसरी ओर ट्रेनों के संचालन में देरी से आम यात्री परेशान है। प्रोजेक्ट की देरी को लेकर, रेलवे बोर्ड और RVNL अधिकारियों की जिम्मेदारी तय करना जरुरी है। यहां यह भी बताना जरुरी है कि RVNL भोपाल में कई अधिकारी सालों से डटे हुए हैं, जिनका तबादला आज तक नहीं हुआ है।
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