द करंट स्टोरी, भोपाल। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिल्ली एनसीआर में पटाखों की बिक्री पर रोक लगाई गई है। कोर्ट का मानना है कि पिछले कुछ सालों में दीपावली के दिन प्रदूषण का स्तर तय मानकों से कहीं ज्यादा रहता है, जिससे कि आम लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। हालात मप्र में भी ठीक नहीं है, क्योंकि दीपावली के दिन ध्वनि एवं वायु प्रदूषण सामान्य दिनों की तुलना में दोगुना से ज्यादा हो जाता है।
प्रति वर्ष मध्यप्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी), प्रदेश के मुख्य शहरों में दीपावली के दिन प्रदूषण (वायु एवं ध्वनि) के स्तर को मापती है। द करंट स्टोरी ने पीसीबी के आंकड़ों को एकत्रित कर पिछले पांच वर्षों में टॉप 5 प्रदूषित शहरों की सूची तैयार की है।
पीसीबी कि रिपोर्ट के अनुसार, इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, सागर एवं गुना में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण होता है। इन शहरों में आरएसपीएम की मात्रा तय मानक 100 से चार गुना अधिक तक पाई गई। जबकि नाइट्रोजन आॅक्साइड एवं सल्फर डाइआॅक्साइड की मात्रा तय मानक के आसपास ही रही।
वर्ष 2016 में रहवासी इलाकों में इंदौर सबसे ज्यादा प्रदूषित रहा, 2015 में भोपाल, 2014 में भोपाल, 2013 में ग्वालियर एवं 2012 में इंदौर में सबसे ज्यादा वायु प्रदूषण हुआ। वहीं कमर्शियल इलाकों में 2016 में ग्वालियर, 2015 में गुना, 2014 में भोपाल, 2013 में इंदौर एवं 2012 में इंदौर शहर सबसे ज्यादा प्रदूषित रहे। उक्त शहरों में आरएसपीएम की मात्रा तय मानकों से चार गुना तक अधिक पाई गई।
क्या है आरएसपीएम:
आरएसपीएम (रीस्पाइरेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) के कण हवा में घुलनशील होते हैं, और इनका साइज दस माइक्रोन से भी कम (मानव के बाल की चौड़ाई के पांचवें भाग से भी कम) होता है। आरएसपीएम कार्बनिक और अकार्बनिक तत्वों का मिश्रण होते हैं। यह कण वातावरण से रासायनिक क्रिया और गाड़ियों के धुएं के दहन से उत्पन्न होते हैं। आरएसपीएम कणों का निर्धारण इनके आकार के आधार पर किया जाता है। आकार में जितना छोटा कण होगा, उतनी ही जल्दी वह नाक में प्रवेश करेगा। इन कणों को आप सामान्य कपड़े के माध्यम से नाक में प्रवेश करने से रोक नहीं सकते।
क्यों खतरनाक हैं आरएसपीएम:
नाक आरएसपीएम को ब्लॉक नहीं कर पाती है, खासतौर से तब जब उनके कणों का आकार कम होता है। सामान्यत: नाक 4 से 5 माइक्रोन के आरएसपीएम कणों को नाक में प्रवेश करने से रोकने में सक्षम होती है। धूल के कणों के साथ मिश्रित हो जाने पर यह कण और ज्यादा भारी हो जाते हैं, जिससे नाक में यह आसानी से प्रवेश कर फेफड़ों में अंदर तक जाते हैं और उन्हें प्रभावित करते हैं। जिससे फेफड़ों के फंक्शन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा, इसकी वजह से ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, डिप्रेशन, बैचेनी जैसे रोगों की शिकायत हो जाती है।
टॉप 5 प्रदूषित शहर
2016
कमर्शियल | Gwalior (274.6) | Indore (257.74) | Jabalpur (238.2) | Pithampur (231.16) | Katni (207.3) |
रहवासी | Indore (246.8) | Pithampur (234.24) | Jabalpur (232.4) | Dhar (229.07) | Gwalior (208.0) |
2015
कमर्शियल | Guna (393.0) | Bhopal (303.3) | Katni (260.0) | Indore (259.46) | Gwalior (250.76) |
रहवासी | Bhopal (346.6) | Jabalpur (246.6) | Indore (234.31) | Dhar (228.99) | Dewas (228.99) |
2014
कमर्शियल | Bhopal (457.7) | Guna (425.0) | Indore (371.78) | Gwalior (314.70) | Sagar (249.750 |
रहवासी | Bhopal (362.31) | Indore (335.51) | Gwalior (239.6) | Jabalpur (190.0) | Ujjain (160.0) |
2013
कमर्शियल | Indore (473.0) | Gwalior (339.7) | Singrauli (331.93) | Rewa (241.75) | Sagar (232.4) |
रहवासी | Gwalior (279.8) | Indore (272.3) | Singrauli (240.43) | Satna (224.0) | Sagar (212.72) |
2012
कमर्शियल | Indore (472.73) | Rewa (346.56) | Bhopal (261.36) | Sagar (196.48) | Shahdol (121.21) |
रहवासी | Indore (589.88) | Bhopal (334.76) | Dhar (315.5) | Rewa (154.41) | Shahdol (52.14) |
(नोट: उक्त आंकड़ें पीसीबी की रिपोर्ट पर आधारित है। शहर के नाम के आगे कोष्ठक में दीपावली के दौरान आरएसपीएम का स्तर है। )
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